Tanu sharma   (तनु ✍️)
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Joined 4 January 2018


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26 MAR AT 20:58

मैं व्यथित,बहती सी, चंचल सी,
नदी के वेग सी,
मार्ग के व्यवधान से ,
अवनालिका सी हो गयी,
हो अपरदन वृक्ष के काटे से
गर मृद ढेर का,
रूठ कर सब तोड़ दूं,
हठ बालिका सी हो गयी।
अश्रु थम,जम गाद बन,
रोके पनपती  पीड़ को,
ये मचलती जलनिधि,
क्रुन्दन न दे दे नीड़ को,
नभ विभा की रोशनी में
जो नहा संतृप्त थी,
आज डूबी श्रृंग तक,
सम वेदना दत्तचित्त थी,
रख अकड़ शोभा निहारी,
शैवालिनी सम नीर में
उस नदी में डूबती
अट्टालिका सी हो गयी।
मैं व्यथित, बहती सी, चंचल सी नदी के वेग सी….

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7 MAR AT 23:48

शिव सुंदर,
शिव शांति स्वरूपा,
तांडव शिव ,
शिव अदभुत रूपा,
नटराजन,
शिव धूमि रमाए
एक ही शिव,
शिव रूप अनूपा।

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3 MAR AT 10:37

In the memories of nature
we will remain just a creation,
Who never ever knew their
condign definition .

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26 FEB AT 20:19

जागती रातें
टूटते सपने
बिखरती उम्मीद
स्वीकार है?
संकुचित जिंदगी
घुटता आसमां
रेंगती मृत्यु
स्वीकार है?
पनपता अपनत्व
खिलते नव कोपल
स्थायी संवेदना
स्वीकार है?
.............स्वीकार है।

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22 FEB AT 11:21

ये शिथिलता टूटती है,
शनय शनय समतल धरा पर ,
बहती अश्रुत नीर सम,
नव विभा को मांगती है,
नयन के कोरों से गिरती
धुंध जैसे अविराम,
झुरमुटों से झांकती है,
विहंगम की लालिमा,
पुष्प की कोपल नरम
ओस अवयव मांगती है।

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12 FEB AT 23:36

कदम कदम पर साथ निभाने का
वादा करने वाले अक्सर
गिन गिन कर कदम रखते हैं -

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5 JAN AT 10:46

ये दूर का आसमां धुंधला सा है मेरे लिए,
इसे देखने को मैं तुम्हें गोद में उठाउंगी,
तपन सूर्य की छन छन कर तुम्हें छुए,
आंचल की ओट में तुमको छुपाउंगी,
लिखीं होंगी लोरियां चांद पर कवियों ने,
तुम्हें देख मैं अपने मन के गीत गुनगुनाऊंगी,
मेरी बदली है जिंदगी तेरी करवट के सहारे,
जीवन की नई परिभाषा मैं तेरे शब्दों से सजाऊंगी।

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18 DEC 2023 AT 10:41

जिंदगी की दास्तां कांटे से जानो,
फूल के मुरीदों की महफ़िल बहुत हैं,
मोहब्बत-ए-यार के दर कहां भटकते,
मेरे शहर में आशिकों की कब्रें बहुत हैं,
हजारों दफा किताबों में दबाया सुकून को,
इन‌ लम्हों को मिटाने एक‌ दीमक बहुत है,
ये जिंदगी तो बहती हुई नदी सी रहेगी,
वक्त बिताने को पानी की एक बूंद बहुत है।

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31 OCT 2023 AT 7:23

It's not a preferable life,
it's better opportunities that
make life preferable.

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26 SEP 2023 AT 12:48

वक्त है कि, जिंदगी को हिसाब देना होगा,
हकीकत-ए-जहां को कुबूल कर लेना होगा,
गर बाब पर भूखा खड़ा हो बेजारियत राही,
घर की एक रोटी को, दो टुकड़ों में होना होगा,
सुना‌ है कि,बेसब्र इनायतें देरी से सुनी जाती हैं,
आसमां से परे भी सिसकियों के ‌लिए एक कोना होगा।

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