24 DEC 2017 AT 22:59

आजकल वो चाँद रहता ही नहीं औकात में
आसमाँ में वो कहाँ आता नज़र बरसात में...
देख़ने बैठे सितारे हम अकेले ही वहाँ
छिप गये वो बादलों में बर्क जो हुई रात में...
चस्म से होती रहे हर पल लहू की बारिशे
वो कभी हाँ ही नहीं कहता मिलन की बात में...
कोशिशें हर बार की हम ने के उसको सब कहूँ
आज तक हम गर्क ही होते रहे जज़्बात में...
हम नहीं करते तमाशा यूँ ग़म-ए-दिल का कभी
मुस्कुरा कर हम ख़ुशी देते रहे ख़ैरात में...
सोचती होगी के तल्हा तो हमें भुल ही गये
आज भी जिंन्दा रही हैं वो मिरे लम्हात में...
@talhaaWrites

- @talhaaWrites