हर रोज़ ये खबरें बताती आ रही अख़बार है..
कहीं जल रही हैं बेटियाँ कहीं रो रहा परिवार है!!
"बहुत अफ़सोस हुआ सुन कर के" कहते तो हैं सब करते नहीं..
पूछो ज़रा उनका हाल जिनपर गिरती ये दुख की दीवार है
सड़कों पर जली मोमबत्तियाँ लगाई जा रही गुहार है..
कहानी वही है चल रही बस बदल रहे किरदार है..
खुद ही करो मुक़ाबला, बन जाओ इतनी मजबूत तुम..
बैठे हो लगाकर आस क्यों ये खोखली सरकार है..
बेहयाई का ये आलम छा गया ऐसा कि "तक़्श"
इंसान बने हैं जानवर और इंसानियत का ही शिकार है!!!
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