"फ़िर न कहना! कहा नहीं, तेरे ज़ख्मों का दर्द हमने सहा नहीं! आ चल गमे दौर अब जी लें हम इससे पहले कि हमारी साँसे न जाए थम जा तुझको रुहे ज़िन्दगी से आज़ाद किया अब तो ख्वाबो में ही अक्सर ज़ीयेगे हम "
दिन ने थकान सारी , रातों पर उंडेल डाली कल की सोंच कर भी हो जाती हैं रातें भारी ! कुछ ग्राम उम्मीदें टूटी , टूटे सेर भर कुछ सपने जो हो दिल टूटा तो फ़िर हो जाती हैं रातें भारी !