खुद बिखर के खुद सवरना सीख रही हूँ
की अब तेरी कमी मे जीना सीख रही हूँ
हाल ए दिल की, क्या बात करूँ गैरो से
अपनो के तानो से, जीना सीख रही हूँ
दरकिनार किये गए थे, अब थक गए है
जीवन अकेलेपन मे जीना सीख रही हूँ
लपटे चुभती है, मगर दर्द का क्या करें
अब चुभन के साथ, जीना सीख रही हूँ
दूरियाँ जिस्म की होती है यादों का क्या
यादों को भुला कर, जीना सीख रही हूँ
मैं जुल्म लगती हूँ उन तकियों पे आज
जिन पर सर रखके सोना, सीख रही हूँ
तुझमे डूबी मैं,अब खुदमें सवार रही हूँ
हाँ तुझसे दूर अकेले जीना सीख रही हूँ
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