इश्क़ औऱ फ़रेब जो तुम साथ में करते हो,
मन भरने पर क्या इरादे बदलते हो,
सुर्ख़ निशां से ज़िस्म जो तुम सजाते हो,
ठहरकर लुत्फ़ क्या उसका उठाते हो,
कठघरे में कुछ, ज़िगर में कुछ जो रखते हो,
कसमों को छलने का क्या कोई हिसाब चुकाते हो,
बेगुनाह बन जो तुम बरी हो गए हो,
यादों से रिहाई का क्या कोई ज़श्न मनाते हो,
कभी भी कुछ भी करने का हुनर जो रखते हो,
कर्मफल से दूर भागने का क्या कोई वहम पालते हो !!
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