QUOTES ON #ज़ज़्बात

#ज़ज़्बात quotes

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17 MAY 2021 AT 13:43

कुछ टूटा है.....पर आवाज़ नहीं है
इश्क़ तो है...पर एहसास नहीं है
ये वो कांच है जो दिखता नहीं है
पर इसका हर एक टुकड़ा
दिल में चुभता कहीं है
हर टुकड़े में तस्वीर उसी की दिखती है
हर तस्वीर मुझसे यही कहती है
तेरी नज़रो में हर वक़्त मैं ही रहूंगा
जितना याद करोगे मुझे
उतना ही अश्क़ बनके बहूँगा

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27 FEB 2021 AT 13:59

हर बात पर कोई
बात लिख देता हूँ
मैं, ये कोई अच्छी
बात थोड़ी ही है,
इसका मतलब है
कि मेरे ज़ज़्बातों
का समंदर गहरा
कुछ ज्यादा है।
वो जिसके ख़्वाबों
में आती हैं एक
'मासूम' सी 'परी'
'शहज़ादी' सी और
फ़िर चली जाती हैं
'अभि' बस 'ख़्वाब'
में 'क़ामिल' एक
'अधूरा शहज़ादा' हैं।

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8 FEB 2020 AT 10:33

समझने लगे गर वो मेरे जज़्बात सारे,
तो लफ़्ज़ों को तहरीर करना मैं छोड़ दूं..!!

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30 JUL 2020 AT 14:32

Duriyon ne mujhe aur kareeb kar diya hai

Tere jaane ke ehsason se bhar diya hai

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28 JUN 2017 AT 9:07

दीवारों पे न इल्ज़ाम लगा,
उनका काम ही रोकने का है,

इल्ज़ाम तू इन ज़ज़्बातों पे लगा,
जिसने मुझे अंदर,
तुझे बाहर बाँध रखा है!

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7 JUN 2020 AT 8:44

हमारी पहली मुलाकात ने ,कुछ यूं शुरुआत कर ली,
मुस्कुराए हम दोनों , आंखों ने दिल की बात कर ली।

इस कदर दिल में उतर जाएंगे वो , कहाँ खबर थी
पहले पहर में उन्हें सोचने बैठा ,और रात कर ली

मेरे गुमशुदा सफर में , हमसफ़र हैं उनकीं यादें,
कुछ यूँ पक्की उनसे प्यार की ज़ज़्बात कर ली ।

जितनी दफा चाँद को देखा, उनका दीदार हुआ,
गुज़र ना सके उनके बगैर वो, हालात कर ली।

ठंडी हवाओं के झोंका ,उनकी खुशबू बहा लाया है
खुली आंख से मैंने, उनके यादों की बारात कर ली।

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23 OCT 2017 AT 12:31

किसी को ख़ुद पर हर एक हक दे आना
हर बार अपना हर एक ज़ज़्बात बयां कर आना
बदले में एक अदद जवाब का हक तक ना पाना

हर बात आईने की तरफ साफ कर आना
बदले में गोल-गोल घाटियों में घूम जाना

तुम्हें क्या बताऊँ दर्द-ए-दिल उस आलम का
ख़ुद का दिल खोल आना बदले में यह सुन आना

"इस बात का कोई जवाब नहीं मेरे पास"

- साकेत गर्ग

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23 JAN 2017 AT 2:56

कुछ जज़्बात लिख देता हूँ
कुछ अल्फ़ाज़ लिख देता हूँ
कम्बख्त यह कलम क्या हाथ आती है
मैं अपने सारे अंदाज़ लिख देता हूँ।

- साकेत गर्ग

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19 SEP 2018 AT 12:46

आदत थी तन्हाइयों की, तुम क्यों मिले?
बेकसी मेरा नसीब था, तुम क्यों मिले?

बेगैरत, बेमुरव्वत बेगानो की भीड़ थी
चाहतों की बहार बनकर, तुम क्यों मिले?

बेज़ार, बेबस ही सही जिये जा रहा था
एक हँसी ख्वाब बनकर, तुम क्यों मिले?

ना कोई लालसा थी ना ही कोई आरज़ू
एक मदभरी शराब बनकर, तुम क्यों मिले?

मुझको वैसे भी जीना नही मर जाना था
चिर निद्रा ही मेरा एक अदद ठिकाना था
आये भी तुम चन्द पलो को खुशबू बनकर
नादाँ था 'संजय' ख़ुशबू को उड़ ही जाना था

अब मैं जीता हूँ ना ही मरता हूँ कैसी बेबसी है
'संजय' को अज़ाब बनकर, तुम क्यों मिले?

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23 SEP 2019 AT 13:51

याद तो होगा नहीं जो बात हुई थी

पर भूलोगे कैसे जो जज़्बात

जहन में बुई थी

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