तलब में मुस्कुराने की
आँख नम है ,ज़माने की
अगर सच्ची मोहब्बत है
जरूरत क्या ,जताने की
तजुर्बा ही तो मिलता है
ठोकरों से ,जमाने की
नही आसान, है कोई
तबियत ,आजमाने की
पड़े जूते ,तो चलता है
कदर क्या है, ठिकाने की
नही मैं याद ,जो तुमको
जरूरत क्या ,भुलाने की
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