एक ने कहा :- पास रखूंगी तुम्हें, कहीं जाने न दूंगी। दूजे ने कहा :- तुमसे दूर गया तो रह भी कैसे पाऊँगा, तुमसे बिछड़ने का दर्द सह भी कैसे पाऊँगा। हर आइना फीका लगेगा उस दिन, जिस दिन खुद को तुम्हारे आंखों में नहीं देख पाऊँगा।
जिसने तोड़ा मेरा दिल उसके ख्यालों में भटकता हूं रात दिन ज़िद है इन आंखों की एक तेरे ही ख्वाब देखें लाख मिले मुझे आंसू तेरी चाहत में सब मंजूर टूटते हैं ख़्वाब मेरे होके चकनाचूर फ़िर भी ये आंखे तेरे सपने देखने को है मजबूर
चढ़ी एक नयी खुमारी थी आखिर बचपन ही तो था वो जिस समय इश्क़ जैसी ना कोई बीमारी थी बस बचपन था दोनों का में था राजकुमार वो भी राजदुलारी थी याद है आज भी मुझे वो दिन मेरे चोट लगने फूंक मारकर उसने सँवारी थी बीत गया सब बचपन के साथ पर वो बचपन की ज़िद्द बड़ी प्यारी थी