QUOTES ON #ज़िंदगी

#ज़िंदगी quotes

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30 APR 2019 AT 6:46

ज़िंदगी की सच्चाइयाँ
सिखाती हैं झूठ बोलना

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2 MAR 2019 AT 13:31

ये दुनिया बड़ी "ज़ालिम" है दोस्त
"दर्द" पे हँसती है....

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23 APR 2019 AT 23:24

अक्ल पे उनकी आता है मुझको तरस
चलती साँसों को जो ज़िंदगी कहते हैं

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15 JAN 2019 AT 19:37

ज़िंदगी की किताब का दूसरा सफ़ह पढ़ रही हूँ

ए ज़िंदगी अब भी रोज़ नए तज़ुर्बे सीख रही हूँ...

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29 DEC 2018 AT 8:19

ग़ज़ल
""""""
अजब इस जहाँ का ग़ज़ब है सलीका
है दुश्मन यहाँ.... आदमी आदमी का

तुम्हारी नज़र को.. नज़र भर पिया है
लिया लुत्फ़ यूँ मैंने भी मय-कशी का

किनारे ख़फ़ा हो गए.......... टूट बैठे
नहीं रास आया.... उमड़ना नदी का

न रंगीनियाँ भा सकीं.. उस नज़र को
नशा था जिसे बस.. तिरी सादगी का

ख़ुदा मुझसे मेरा.... ख़फ़ा रह रहा है
सिला ये मिला है.... मुझे बंदगी का

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20 AUG 2020 AT 21:40

हमसे ना पूछिये जिन्दगी के बारे में,
इश्क़ क्या जाने इश्क़ के बारे में..

मिसाल बन कर जीये है हम इस जमाने में,
तुमको सदियाँ लग जाएगी हमे भूल जाने में..

कुछ बातें गुज़र जाने के बाद बताएंगे तुम्हें,
दुआ करो कि एक आख़िरी मुलाकात वहाँ भी हो...

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11 NOV 2018 AT 16:09

मुसाफ़िर, दिखा पीठ जाता कहाँ है,
तिरी है जो मंजिल, वो रहती यहाँ है।

मिरे यार मत बैठ थक-हार के अब,
अभी बस में करना ये सारा जहाँ है।

उसे ढूँढ कर ही सुकूं अब मिलेगा,
रक़ीबों बता दो वो रहती कहाँ है।

मुझे दुश्मनों की ज़रूरत नहीं है,
करीबी मिरे सब फ़रेबी यहाँ है।

बरसती जहाँ नैमते है खुदा की,
मसानों में देखो, वो रहते वहाँ है।

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29 JUN 2020 AT 18:00

ज़िंदगी में जो पसंद आते है,वही साथ छोड़ जाते है
उनकी खुशियों ख़ातिर हम अपनी खुशियों को भूल जाते है..

उन्हें क्या पसंद है क्या नहीं ये जानने में हम
अपनो के साथ,ख़ुद को भी भूल जाते है..

हम उनकी खुशियों के ख़ातिर दुवाएं मांग आते है,
एक दिन वही हमें तन्हा छोड़ जाते है..

वो क्या समझेंगे तुम्हारे एहसासों,जज्बातों को
जो अपनी खुशियों के ख़ातिर,अपनो का साथ छोड़ जाते है..

ज़िंदगी के एक दौर में वो इतना मगरूर हो जाते है,
कि गर हम बुलाना भी चाहे तो वो मुँह मोड़ जाते है..

उनकी तस्वीर को देखकर मेरा मुरझाया चेहरा खिल जाता है,
गर वो देखो मुझे गैरों के साथ,तो वो ख़ुद में ही जल जाते है..!

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21 NOV 2017 AT 21:38

मेरी हर गलती को खामोशी में लपेटकर
तुम जो देती हो मुस्कुरा..
सच बताना ए ज़िन्दगी
फिर किसी तूफ़ान का षड्यंन्त्र रच रही हो न?

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2 MAR 2019 AT 7:02

"माँ" तू कितने झूठे दिलासे देती थी,
आधा मांगूँ, तो ज़्यादा देती थी,

अब ज़िंदगी तो तेरी तरह, नहीँ है ना "माँ"
ज़्यादा माँगता हूँ, पर यह, आधा भी नहीं देती...!
अब दिखा, इसे भी आँख ना "माँ'",
अब लगा, इसे भी, डाँट ना "माँ"...!

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