आ चल चाक-ए-ज़िगर को देखते हैं
इक निगाह उस खंज़र को देखते हैं
महफ़िल है बस इक शख़्स के नाम
दिखा जो वो तो जी भर के देखते हैं
शहर का शहर ज़ख्मी नज़र आता है
आ हम भी वो क़ातिल नज़र देखते हैं
खिज़ा को छुआ तो बहार गाने लगी है
ऐसा है तो हम भी उसे छूकर देखते हैं
ज़लज़ला थम गया आने की ख़बर से
क्या कमाल है, उसका कहर देखते हैं
दिल भी ठहर के बोला थोड़ा सब्र कर
सामने से वो लख्त-ए-ज़िगर देखते हैं
के ज़माना कायल है मेरी फनकारी का
आ तुझ पे भी अपना असर देखते हैं।।
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