शाख पे रखकर अरमानों को, खेल रहे हैं वोटों पर,
ये ज़माना तंज कसता है एक दूसरों की चोटों पर।
हो जाता सोज़ हृदय को, जब लिया प्रमाण वीरों का,
वो हरपल जिनके रहता है, नाम भारत का होंठो पर।
करते हैं दिखावा याद करके उन शहीदों की कुर्बानी,
साल में एक दिन फ़ूल चढ़ा देते हैं उनकी फ़ोटो पर।
अच्छा हुआ कि भगत सिंह नहीं है सरकारी नोटों पर,
वरना लोग उड़ा देते, मुन्नी और शीला के कोठों पर।
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