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बरसात की दुआ करें क्यों आसमाँ से हम
उसको भी फ़िक्र होगी, हैं कच्चे मकाँ से हम।1
कहते हैं ग़र भले के लिए है तो बोल दो
इक झूठ भी न कह सके अपनी ज़बाँ से हम।2
मिलता नहीं है कुछ भी हमारे हिसाब का
ग़ुरबत में खाली हाथ ही आए दुकाँ से हम।3
अपनी तो दफ़्न कर दी, मगर अपने बच्चों की
ख़्वाहिश करेंगे पूरी बताओ कहाँ से हम।4
लेकर चले थे साथ जिसे अपने दोस्तो
बिछड़े हैं देखो आज उसी कारवाँ से हम।5
है दिल से दिल को राह, यही सुनते आए हैं
"अब तुम से दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम "6
हो जाए ग़र ये ख़त्म तो आराम कुछ करें
अब थक चुके हैं ज़िन्दगी के इम्तिहाँ से हम।7
बेनाम ज़िन्दगी मिली अफ़सोस है "रिया"
गुमनाम हो के जायेंगे अब तो जहाँ से हम।8
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