कि बता दें अगर तुझसे दूरियों की वज़ह ,
तेरी महफ़िल में तमाशा सरेआम हो जाएगा ।।
कुछ राज़ राज़ ही रहें तो बेहतर ,
वर्ना बेवफ़ा का तेरे सर इल्ज़ाम हो जाएगा ।।
इश्क़ तो वो है जो मैंने तुझसे किया ,
तुझसा करूँ तो दिल बेईमान हो जाएगा ।।
सिले ही रहें तो बेहतर हैं ये लब ,
ग़र खुल गए तो इश्क़ बदनाम हो जाएगा ।।
न जताई इनायत ये तरज़ीह थी मेरी ,
न थी ख़बर तग़ाफ़ुल मेरा ईनाम हो जाएगा ।।
ये जो तेरे सर है मेरे इश्क़ का दामन ,
ग़र हटा लूं तो तू बेमक़ाम हो जाएगा ।।
कि पीने दो खामोश मुझे ज़ाम मेरे दर्द के ,
इक लव्ज़ भी कहा तो सब सुनसान हो जाएगा ।।
मैखाने की तह तक न जाना ए वाइज़ ,
खामखां तू भी इंसान हो जाएगा ।।
दिल करता है बोलू तुझसे तेरी ही ज़ुबाँ ,
मग़र यूं जो किया तो इन्तक़ाम हो जाएगा ।।
ये जंग-ए-इश्क़ है "परी" यहां हार ही मुनासिब ,
जीत की चाह में तो कत्लेआम हो जाएगा ।।
-