चलो, ग़मगीं नज़र को आज, हँसी से मिला आएँ
सड़क भूखी तड़पती है, उसे खाना खिला आएँ
यहाँ की थरथराती रात, रोती है किनारों पर
सितारों की सुना कर दास्ताँ, उनको सुला आएँ
ज़मीं बंज़र रुलाती है, दफ़ा कितनी समंदर को
दरारें रो रही है दर्द से, दे कर दवा आएँ
ख़बर है, मर गई इंसानियत रफ़्तार के हाथों
बचा लें कुछ अस्मिता रूह को सबकी जिला आएँ
थिरकती है तमन्ना, घुंघरू बाँधे बजारों में
महक ले आ फ़लक से, कि उम्मीदें दिला आएँ
लगे बहने नयन बूढ़े, पनाहों की तलाशी में
ज़वां ख़ूँ को सही कर्मों- धरम का, दे सिला आएँ
शमाएं बुझ रही हैं, तू हवा को रोक 'आराध्या'
किनारा कर निशा काली, दिये हम भी जला आएँ
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