QUOTES ON #ग़ज़लनामा

#ग़ज़लनामा quotes

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26 MAY 2020 AT 18:05

मौत के आने से पहले ही मर चुके हैं हम ,
दिल क्या टुकड़ों में ख़ुद बिख़र चुके हैं हम ।।

डर जरा भी नहीं मौत आई तो ख़ुशी होगी ,
अब तो बस जीने से बेहद डर चुके हैं हम ।।

ज़िल्लत -ओ- दर्द के सिवा कुछ भी न मिला ,
उन वफ़ा की गलियों से गुज़र चुके हैं हम ।।

दूसरों के लिए बेहद जिये अब और न होगा ,
खुदगर्ज़ी की जमीं पर पैर धर चुके हैं हम ।।

अब किसी की सोहबत की तलब ना रही ,
हयात सारी तन्हाई के नाम कर चुके हैं हम।।

बेख़बर हो दुनिया से अब ठहरने की चाहत ,
मतलब की दुनियादारी से भर चुके हैं हम ।।

रिश्तों की ज़मीं पर काँटे बेहद चुभे "फ़लक" ,
अब ख़ल्वत की खाई में उतर चुके हैं हम।।

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24 APR 2019 AT 18:27

**.....ग़ज़ल.... **

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14 DEC 2021 AT 9:42

हर तरफ़ हमारी जीत के चर्चे थे हमारी हार के फ़तवे नज़रअंदाज़ हो गए।
हमें फ़ख्र हैं ख़ुद पर कि हम ख़ामोशी से निकलकर सबकी आवाज़ हो गए।

जब तक लूट रहे थे हम दुश्मन ख़ुश थे, तरक़्क़ी हुई, वो नासाज़ हो गए।
झूठ है कि खो जाते हैं शहीद वतन पर फ़ना हो के, वो तो मिराज हो गए।

जिन्हें रूह से लगाव था उन्होंने रूह की पहरेदारी की और रूहेदार हो गए।
और जिन्हें थी तलब बस जिस्म की लज्ज़त पाने की वो इश्कबाज़ हो गए।

शुरू में तो हर कोई होता हैं ख़ुदा का ही बंदा, मेरे दोस्त थोड़ा या ज्यादा।
जिनकी तलब कुछ ज़्यादा ही बड़ी थी वो जिस्मफरोश, जालसाज़ हो गए।

शौक़ से कोई नहीं चाहता है ख़ुद का पसीना बहाकर किसी का ख़ून बहाना।
जिन्होंने दबने की ठानी आम रह गए, जिन्होंने आवाज़ उठाई रंगबाज़ हो गए।

एक वक़्त था जब हमारे दिल में भी बस नफ़रत ही नफ़रत भरी थी 'अभि'।
फिर यूँ हुआ कि हम यकायक ही 'तन्हा' हो गए और फिर फ़ैयाज़ हो गए।

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14 MAR 2019 AT 9:11

नज़र से नज़र यूँ मिला कर क्या होगा
सफ़र और आगे बढ़ा कर क्या होगा

मरासिम जो जिंदा है गुमनामी में ही
उसे मार कर या बचा कर क्या होगा

मिरी रूह पर है तिरी ही हुक़ूमत
सनम ज़िस्म पे हक़ जता कर क्या होगा

ख़फ़ा हो अगर रूह ही रूह से तो
ये रस्म -ए-ज़हाँ भी निभा कर क्या होगा

दुपहरी भी याँ स्याह रहती है हरदम
तिरा एक शब मह जला कर क्या होगा

है झुर्री पड़ी आरिज़ - ए - आरज़ू पे
यूँ ग़ज़लों में ख़ुद को सजा कर क्या होगा

तबाही है "आराध्या" की कहानी
ये लिख कर क्या होगा सुना कर क्या होगा

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8 FEB 2019 AT 17:18

चलो, ग़मगीं नज़र को आज, हँसी से मिला आएँ
सड़क भूखी तड़पती है, उसे खाना खिला आएँ

यहाँ की थरथराती रात, रोती है किनारों पर
सितारों की सुना कर दास्ताँ, उनको सुला आएँ

ज़मीं बंज़र रुलाती है, दफ़ा कितनी समंदर को
दरारें रो रही है दर्द से, दे कर दवा आएँ

ख़बर है, मर गई इंसानियत रफ़्तार के हाथों
बचा लें कुछ अस्मिता रूह को सबकी जिला आएँ

थिरकती है तमन्ना, घुंघरू बाँधे बजारों में
महक ले आ फ़लक से, कि उम्मीदें दिला आएँ

लगे बहने नयन बूढ़े, पनाहों की तलाशी में
ज़वां ख़ूँ को सही कर्मों- धरम का, दे सिला आएँ

शमाएं बुझ रही हैं, तू हवा को रोक 'आराध्या'
किनारा कर निशा काली, दिये हम भी जला आएँ

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12 FEB 2019 AT 9:08

नाज़नीं खोल कर लटें अपनी
ओढ़नी से उतर रही होगी



फिर दरीचे में आ गया चंदा
जाने जानाँ निखर रही होगी



झांझ, नथ और बिंदिया, झुमका
आईने में सँवर रही होगी

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4 FEB 2019 AT 6:07

//ग़ज़ल//

राँझणा नहीं लिखता, हीर के नसीबों में
रब तिरी अदालत में क्या सदाएँ आती है

(Read in Caption)

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4 APR 2019 AT 13:39

बहाने इसी कुछ खता कर चले हैं
लबों को लबों से छुआ कर चले हैं

कहीं धूप में जो वो बादल घिरे हैं,
समझ जुल्फ की वो घटा कर चले हैं

हवाएं नशे में शराबी हुई हैं ,
बदन की महक को सबा कर चले हैं

नज़ाक़त से उनकी कली भी खफ़ा हैं
कमर जब वो अपनी दिखा कर चले हैं

कहीं फिर दिलों की बढ़ी जो रवानी
समझ 'आरज़ू' की दुआ कर चले हैं

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20 JAN 2019 AT 16:21

कतरा कतरा पिघल रही होगी
तन्हा तो वो भी जल रही होगी

बिखरा होगा कनार का काजल
नींद अश्कों में ढ़ल रही होगी

रुख़ पे होगा जो ज़ुल्फ़ का परदा
जान करवट बदल रही होगी

दिन तो मौजों में कट गया होगा
रात आहों में पल रही होगी

रूह में मिल गया हो "दीवाना"
हसरत-ए-दिल मचल रही होगी

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13 MAR 2021 AT 22:25

ग़ज़ल- छोड़ जा ऐ सनम !

बस मुझे तू ख़फ़ा छोड़ जा ऐ सनम !
जो नया है पता छोड़ जा ऐ सनम !!
💔

हाँ, बहुत गलतियाँ मैंने की है सनम !
है यही इल्तिज़ा छोड़ जा ऐ सनम !!
💔


【पूरी ग़ज़ल का link मेरी Bio में 】

स्वरचित/ मौलिक- सर्वाधिकार सुरक्षित

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