ये जानकर... चल दिए अब हम भी, अपनी मंजिल की ओर तुम्हें गैर मानकर; हाँ! मान लिया कि... तेरा मेरा सफरनामा कभी साथ का था ही नहीं; मान लिया कि... कभी हमने साथ कोई वक़्त बिताया ही नहीं; मान लिया कि... तू कभी मेरी जिंदगी में आया ही नहीं; हाँ मान लिया... वो सब... जो तू चाहता था; मान लिया वो सब... जिसे तू चाहता था; अब न तेरी चाहत, अब न तेरी इबादत, अब न कोई शिकायत, और न ही कोई हिदायत।
यह जानकर कि तुम्हारे घर से ख़ाली हाथ लौटते वक्त तुम्हारी क्यारी से जो उड़हल की एक डंठल तोड़ लाया था मैं उस दिन आ कर देखो उस पौधे ने जड़ें पकड़ ली मौसम की बेरुख़ी के बावजूद मिलने लगे हैं फूल अब पूजा के लिए रोज़...!!