Ashish Awasthi 3 JAN 2018 AT 12:02 'ख़ाक' लड़ रहे लोग सब, पूछ पूछ कर ज़ातराम , ख़ुदा हैरान हैं, नाज़ुक हैं हालात।। - Ashish Awasthi 10 SEP 2018 AT 22:48 काट दिए हैं पेड़ सब, कहीं नहीं है छाँवकहते सीना ठोक कर, बदल रहा है गाँव।। - Ashish Awasthi 25 NOV 2017 AT 10:56 चूल्हा बुझा गरीब का,लगी पेट में आग।होली में भूखा मरे, कैसे गाये फाग ।। - Ashish Awasthi 22 DEC 2017 AT 23:50 क़त्ल करो ना ख़ुदकुशी, मरना है बेकार'ख़ाक' करो अब इश्क़ तुम, रोज़ मरो सौ बार।। - Ashish Awasthi 21 JAN 2018 AT 22:27 कमा कमा के कमर भी, टूट गयी कल रातकुर्सी दफ़्तर की कहे, लाख टके की बात।। - Ashish Awasthi 10 DEC 2017 AT 16:16 मन के मारे सब मरें, मन ना मारे कोय।रो रो कर जीवन गया,अब काहे को रोय।। - Ashish Awasthi 12 DEC 2017 AT 22:12 कोयल करती कुहू हू, कौवा बोले कांव।कोय न बोले शहर में, जब से छूटा गांव।। - Ashish Awasthi 31 MAY 2020 AT 10:02 सर के ऊपर छत नहीं, ना है तन पर छांवभूखे प्यासे लोग अब, वापस जाते गांव।। - Ashish Awasthi 31 MAY 2020 AT 14:33 रोटी तक ना दे सका, करता लंबी बातबड़े शहर ने कष्ट में, छोड़ दिया है हाथ।। - Ashish Awasthi 7 APR 2021 AT 11:23 कितना भी कोई कहे, पर है सुंदर गाँवभूखे को खाना मिले, और पथिक को छाँव।। -