ना ज़मीं से,
ना आसमाँ से,
तुम बदल रहे हो जहां से,
आए हो कहां से,
जाना हैं कहां पे,
बीच के सफर में,
घबराए हो इन्सां से,
जो बचा रेह गया "कुछ",
कब पहुँचोगे वहाँ-"सब कुछ हैं हमी से",
दर्द की टीस से,
लहू के सिंदूर से,
डगमगाता हैं शहर,
अपने ही गुरुर से,
हस पडो तुम,
चल पडो,
सब जुड़ा हैं ज़मीर से,
भरो दरारों को,
अपने ही उसूल से,
किसी संत ने कहां है ये,
उठो तुम अमीर से,
रहो तुम गरीब से,
मत बदलो ज़माने से,
बदल दो ज़माने को
अपनी नजर से,
चल पडो तुम,
उठ चलो,
ना आस्मा से,
ना ज़मी से,
बदल दो अपनी किस्मत
"खुद ही से"!!
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