"मुझे मेरे लफ्ज़ों से एक बार में पहचान लो मेरे नज़्मों से जान लो अभी तुम इतने भी समझदार नही हो। जो लगता हैं कि बस लिखने से तुम्हें रुहानियत आ जाएगी ए दोस्त, इतना जान लो तुम 'अभिशार' नही हो।"
वो ज़िन्दगी ही क्या ज़िन्दगी जो ना-गवार हो, ना हो उम्र बड़ी मगर जितनी भी जियो बेसुमार हो, फकत इक जल्दी से भूल जाने के अलावा "सत्येंद्र" वाकी औरो से तुम आदमी तो बहुत ही होशियार हो..