नहीं नहीं ऐसे नहीं, देखो,
अपने लबों को, मेरे लबों से मिला दे,
अपनी रूह का ज़ाम,
मेरे ज़िस्म के ग्लास में मिला दे...
ऋतुएं बीत गई, ना जाने कितनी,
बिखरे है केश, तेरे इंतजार में,
आज पूरा है चांद फलक पे,
आज तो आके इन केशो को सुलझा दे...
अपने लबों को मेरे लबों से मिला दे,
अपनी रूह का ज़ाम,
मेरे ज़िस्म के ग्लास में मिला दे...
∆*आवारा 🦇 परिंदा*∆
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