ख़ुदा बन बैठे हो क्यूँ, जब तुम्हे 'ना' साथ निभाना आता है
हँसी क्या, ख़ुशी क्या, तुम्हे तो सिर्फ़ 'हमें' रुलाना आता है
पाक मन वाला हर कोई तड़पता रहता है यहाँ
तुम्हे तो सिर्फ़ 'नापाकों' का साथ निभाना आता है
कभी तो कोई बात बने, कभी तो सुख की छाँव मिले
तुम्हे तो सिर्फ़ दुखियारे को 'और दुखी' बनाना आता है
टेढ़ी चालें चलकर, हुक्मरान बन बैठे हैं सभी
'सीधा चलने वाले' को, हर किसी को गिराना आता है
किससे गिला करेगा, किससे शिक़वा करेगा 'सागा'
जब ख़ुद 'ख़ुदा' को ही, केवल ग़रीब को दबाना आता है
- साकेत गर्ग 'सागा'
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