मैं मजदूर हूँ.....!
खुली आँखों से कैसे ये मंजर देखूँ!
क्यों मैं, सड़क पर भटकता हिन्दुस्तान देखूँ!!
भूख से बेबस हैं हर बसर यहाँ!
क्यों मैं, इंसानियत की जलती तासीर देखूँ!!
नफरतों से देखूँ या उम्मीदों की डोर से!
क्यों मैं, निर्वाचित सरकारों की निष्ठूरता देखूँ!!
हैं यहां झूठे और स्वार्थी नेताओं का जमावड़ा!
क्यों मैं, वैश्विक विपत्ति मे राजनीतिक जहर देखूँ!!
जिन शहरों की चकाचौंध मे खून-पसीना बहाया!
क्यों मैं, आज वहाँ जीवन को लूटता देखूँ!!
फलती-फूलती इन दुश्वारियों में!
क्यों मैं, हर रोज गमों से होती यारी देखूँ!!
भय,भूख,खौफ, तन्हाई!
क्यों मैं, इन सबको मुझमे देखूँ!!
मैं मजदूर हूँ ,कोई तो समझो दर्द-औ-गम़ मेरा!
क्यों मैं, आज मुड़कर मेरा गाँव देखूँ!!
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