ख़्वाहिश थी मेरी...एक अदद मुलाकात को,
पलटकर जो देखा उसने, तो आदाब हो गया!
मै खड़ा खड़ा ही रहा..ये उससे पूछता पूछता,
उसने झुकाई नजरें जब, तो जवाब हो गया!
फलसफा पढता रहा...फ़क़त सफा दर सफा,
उसने वो जो लिख दिया, तो किताब हो गया
मैने उम्र गुज़ारी, उनके बेहिसाब इंतजार में,
वो मुस्कुरा दिए बस यूँ, तो हिसाब हो गया!
एक मुद्दत से तरसा....मैं अपनी पहचान को,
उसने मेरा नाम लिया, तो खिताब हो गया!
दिल से मैंने ये चाहा की..भुला भी दूँ मैं उसे,
ये सोचते ही मेरा दिल मेरे ख़िलाफ़ हो गया!
भटकता रहा ताउम्र..उसके दिल के इर्दगिर्द,
बाद उसके इकरार के "राज" आबाद हो गया!
-