" मेरा मन हर्षेगा "
मधुमस्त नयन, जैसे गर्जन, ये देख मेरा मन हर्षेगा !
जब होगी विदित्वा हमको ,फिर प्रफुल्लित होे जग हर्षेगा।
जब होगी वसंत ऋतु, पुष्पों की सुगंध से वन चमकेगा ।
बन के पावन सा मन ,जैसे गर्जन , वन उपवन चमकेगा ।
देख लहराती पुष्पों की डाली, ज्यों भौरां कोई पनपेगा ।
प्रकृति, झरने, नदियां, कोयल की कुँकूँ से सब महकेगा ।
फूलों की कलियों की अंकिचित भाषाएँ ।
भवरों और फूलों की वार्ता बस वो ही समझ पाएं ।
पंकितियां तो कुछ भी नही हैं ये ,जाने क्यों अच्छी हैं लगती।
ये बात तो सब है समझ चुके, जाने प्रमोद कब समझेगा ।।
रचना - प्रमोद कुमार (आर्य )
YouTube/ MUSAFIR HU YAARO
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