QUOTES ON #हिम

#हिम quotes

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हिम पटी है राहों में
कितनी सकूँ है इस
सर्द हवाओं में
पर्वत भी हैं सिहर रहे
बर्फ- बर्फ हो बिखर रहे
पूरी धरा आच्छादित है
सबका मन आनंदित है
कितनी सुंदर कितनी प्यारी
खुशियों की बेला आयी है
ऊब गए थे सभी गर्मियों से
अब रुत ये सुहानी आयी है
हर मौसम का अनुभव हो
ये सुख हमने ही पायी है
धन्य- धन्य है भारत भूमि
जहाँ हमने जीवन पायी है
कुंजित है पक्षियों के कलरव से
हर जगह की एक नयी कहानी है
सत्य, अहिंसा का पाठ दुनिया को
हमने ही सिखलायी है....!!
धन्य हुआ हम सबका जीवन
जहाँ हम सबने जीवन पायी है...!!!
Date:- 11 दिसंबर 2017©©

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11 DEC 2017 AT 20:45

विज्ञान का 'प्रदूषण' ध्वंश 'भीषण' उगलता रहा,
और हिमालय का गौरव धीरे-धीरे पिघलता रहा

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हिम के उत्तुंग शिखर से निर्झर सी बहने वाली,
उस वन की नीरवता में चुप चुप सी रहने वाली।
हे गंगा की लहरें कैसे तुम इतना सब कुछ सहती हो,
बन अघहारी यूँ निर्मिशेष कैसे तुम प्रतिपल बहती हो।

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12 DEC 2021 AT 10:44

क्या तौफा दू नही मालूम
बस दुआ है बस इतनी
तुम इस जिंदगी में बे-इंतेहा रहो🤩


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हे पर्वतराज ! वीरों ने जो
साहस , शौर्य वहाँ दर्शाया है ..
हिम ने पिघल-पिघल कर
सभी नदियों को पूज्य बनाया है ..

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11 DEC 2017 AT 18:27

उसे पिघलाना है मैने ठान रखी थी,
वो पर्वत सा बना रहा मैं भी उस पर हिम सी जमी रही।

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Climb where you want to but don't fall once you reach.

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11 DEC 2017 AT 23:01

क्या अद्भुत प्रेम है
उस पर्वत और हिम का
स्थूल, ठोस, कठोर
पर्वत का न बदले रूप
श्वेत, कोमल, फाहे सा
पिघले जो उसपे पड़े धूप
हर शिशिर, पर्वत का थका तन ढक जाती
हर वसंत, मनाती उसे भी पिघलने को
हर गर्मी, बेमन चली जाती है
पर्वत सदियों की कठोरता समेटे
वहीं खड़ा रह जाता है
आहों में दब जाता लेकिन पिघल कहाँ पाता है

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11 DEC 2017 AT 17:57

पर्वत सा टिका है वो नफरत निभानें में ....
मै हिम सा दिल लिए मोहब्बत निभा रहीं हूँ !!

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15 NOV 2017 AT 18:06

" मेरा मन हर्षेगा "

मधुमस्त नयन, जैसे गर्जन, ये देख मेरा मन हर्षेगा !
जब होगी विदित्वा हमको ,फिर प्रफुल्लित होे जग हर्षेगा।

जब होगी वसंत ऋतु, पुष्पों की सुगंध से वन चमकेगा ।
बन के पावन सा मन ,जैसे गर्जन , वन उपवन चमकेगा ।

देख लहराती पुष्पों की डाली, ज्यों भौरां कोई पनपेगा ।
प्रकृति, झरने, नदियां, कोयल की कुँकूँ से सब महकेगा ।

फूलों की कलियों की अंकिचित भाषाएँ ।
भवरों और फूलों की वार्ता बस वो ही समझ पाएं ।

पंकितियां तो कुछ भी नही हैं ये ,जाने क्यों अच्छी हैं लगती।
ये बात तो सब है समझ चुके, जाने प्रमोद कब समझेगा ।।

रचना - प्रमोद कुमार (आर्य )
YouTube/ MUSAFIR HU YAARO

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