आज का शब्द:::"हिंसा "
खो गयी मनुजता मानव में,जब हिंसा ने डाला डेरा,
दया -प्रेम, करुणा-स्रोत, सूखा पड़ा मन का घेरा।।
भौतिकता ने सिखलाया,सुख सुविधाओं में जीना,
अपनी प्यास बुझे जैसे भी, चाहे पड़े रक्त पीना ।।
हथियारों की होड़ लग गयी,बुद्धि बेचारी मौन हो गई ,
अपनों ने छुरा है जब भोंका,दोस्ती तो दम तोड़ गई।।
पशु-पक्षी, जीव-जन्तु,अब तो बने हैं मानव भोजन,
जीव-दर्द से मानव को अब,नहीं रहा है कोई प्रयोजन। ।
इस धरती के ऊपर आज ,युद्धों के बादल मँडराते,
व्याधि कोरोना फैलाने,जैविक विषाणु अस्त्र बनाते।।
हिंसा की जो आग लगी है,यही तो बस दुख का कारण,
और अहिंसा जीवनदायी,वही कर सकती है निवारण।।
आओ! अहिंसा-दीपक ,हम सब मिलजुल पुनः जलायें,
नई चेतना मानव मन में, दीप बना प्रकाश फैलायें।।
सुधा सक्सेना (पाक रूह)
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