QUOTES ON #हिंसा

#हिंसा quotes

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5 DEC 2018 AT 13:32

मर रही है इंसानियत यहाँ..
धर्म जो अमर हो रहा है..!!

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18 MAR 2018 AT 16:58

भगवे से कहाँ कोई हानि है,
बनती सोच से सब परेशानी है !!

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26 OCT 2020 AT 21:24

रामचन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा,
राम के नाम पर रावण निर्दोषों का ख़ून बहाएगा।।

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2 OCT 2018 AT 15:22

ख़ादी चरखा धोती ऐनक ,
यादे बापू की ज़ेहन मे ।

उजली टोपी गंदे नेता ,
ख़ाकी वर्दी हैैं रेहन मे ,

आत्म मंथन गाँधी दर्शन ,
गाँधी सूत्र हैं ज़ेहन मे ।

डाली बैंठी कोयल गाये ,
अनिष्ट आशंका ज़ेहन मे ।

अब हिंसा ही हिंसा होती ,
भारत हिंसा के रेहन मे ।

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16 JUN 2021 AT 17:54

आज का शब्द:::"हिंसा "
खो गयी मनुजता मानव में,जब हिंसा ने डाला डेरा,
दया -प्रेम, करुणा-स्रोत, सूखा पड़ा मन का घेरा।।

भौतिकता ने सिखलाया,सुख सुविधाओं में जीना,
अपनी प्यास बुझे जैसे भी, चाहे पड़े रक्त पीना ।।

हथियारों की होड़ लग गयी,बुद्धि बेचारी मौन हो गई ,
अपनों ने छुरा है जब भोंका,दोस्ती तो दम तोड़ गई।।

पशु-पक्षी, जीव-जन्तु,अब तो बने हैं मानव भोजन,
जीव-दर्द से मानव को अब,नहीं रहा है कोई प्रयोजन। ।

इस धरती के ऊपर आज ,युद्धों के बादल मँडराते,
व्याधि कोरोना फैलाने,जैविक विषाणु अस्त्र बनाते।।

हिंसा की जो आग लगी है,यही तो बस दुख का कारण,
और अहिंसा जीवनदायी,वही कर सकती है निवारण।।

आओ! अहिंसा-दीपक ,हम सब मिलजुल पुनः जलायें,
नई चेतना मानव मन में, दीप बना प्रकाश फैलायें।।
सुधा सक्सेना (पाक रूह)

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13 MAR 2021 AT 19:21

मंदिर में पानी पीने आए एक मुस्लिम युवक को बेरहमी से पीट दिया गया। और इतना ही नहीं ख़ुद से ही विडियो बनाकर वायरल कर बहादुरी दिखाई गई।🥺

पता है, इंसान की सबसे बड़ी गलतफहमी यह है कि उसको लगता है उसके धर्म का बोझ उसके ही कंधे पर है।
इन महामूर्ख तुच्छ कुकुरमुत्तों को क्या पता कि धर्म हमसे पहले भी था और हमारे बाद भी रहेगा। हम बस यात्री हैं, अच्छा कार्य करे जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी को शर्मिंदगी न उठानी पड़े।🙏

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4 MAR 2020 AT 13:40

एक तिनका ऊँगली में चुभ जाने से रो पड़े थे तुम
पूरा का पूरा खंज़र अंतड़ियों में कैसे घुसा देते हो

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6 JAN 2020 AT 11:38

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29 JAN 2021 AT 7:07

उत्पात, हिंसा
द्वेष आग उगलते हुये
शोर मचाते है और
सुनाई देते है।

संयम, संघर्ष, धैर्य
पीड़ा, दुःख
कड़कती ठंड में भी
मौन रहते है।

बिसरा दिये जाते है।।

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8 JAN 2020 AT 16:25

हिंसा

मानव धर्म को भूलाकर अधर्म को धर्म कह रहे हो
इंसानों को बांटकर रुके नहीं जो धर्म को भी बांट रहे हो

मत करो अच्छाई व शांति को खत्म
मत दो इंसानियत व बेगुनाहों को ज़ख़्म

बेगुनाहों पर वार करके बेशक तू तड़पेगा
खोखले शान के चलते अपनी रूह को तू ही दूषित करेगा

आग से आग को बुझा सकते हो क्या
दूषित दुर्गंध में श्वास ले सकते हो क्या

मत फैलाओ समाज में आतंक व हिंसा जो तेरा नाश कर देगी
मत करो क्रूरता इतनी कि धरती की छाती तेरा बोझ उठाने से इनकार कर देगी

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