QUOTES ON #हिंदी_कविता

#हिंदी_कविता quotes

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18 DEC 2018 AT 19:51

रोती तो नहीं हूँ , बस मुस्कुराना भूल गयी हूँ
पहले की तरह अब मैं, जीना भूल गयी हूँ
जाने किस बात की सोच में, खोयी सी रहती हूँ
खामोश रहने लगी हूँ, अपनी बकबक भूल गयी हूँ
लोगों से अब दिल मेरा, शिकायत का नहीं करता
कोई है भी क्या अपना? मैं ये भी भूल गयी हूँ
सहम सी गयी हूँ मैं, अंदर से जाने क्यूँ
एक अरसे से खुलके, मैं हसना भूल गयी हूँ
दिल मेरा भी करता है, ख्वाब हकीकत हो मेरे
जबसे टूटी हूँ, ख्वाब सजाना भूल गयी हूँ ।

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1 DEC 2018 AT 13:30

मदिरालय
(अनुशीर्षक में पढ़िए)

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12 AUG 2020 AT 11:05

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19 OCT 2018 AT 16:21

पार्थसारथी
(अनुशीर्षक में पढ़िए)

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6 OCT 2020 AT 0:14

स्त्री का तन और पुरुष का मन
सदैव ही, दुत्कारा क्यों गया?

स्त्री का सौम्य उसके वक्ष से,
स्त्री का आदर उसके वक्र से,
स्त्री का गुण उसके रंग से,
स्त्री का कौशल उसके अंग से,
सदैव ही, संवारा क्यों गया?

(पूरी कविता कैप्शन में पढ़े...!)

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24 NOV 2020 AT 15:36

तू सूरज की तरह बन ना कि तारे की तरह।
नियम से पक्का बन ना कि सारे की तरह।

मौसम की तरह लोगों के नज़रिये बदल जाते हैं,
तू चल अपनी चाल ना चल ज़माने की तरह।

बादल मुसीबत के बहुत आते हैं इस सफ़र में,
तू प्रकाश की तरह बन ना कि छाते की तरह।

तुझको समझने वाला कोई नहीं मिलेगा यहां,
अकेले ही पकना है किसी मीठे फल की तरह।

सही ग़लत कोई नहीं बताता ख़ुद समझना है,
ध्यान से चल तू यहां कांटे है जंगल की तरह।

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29 OCT 2020 AT 9:59

जीवन में खुश थी मैं
दुख क्या होता है ये बताने वाले थे लोग,

हर ऊंचाई को छूना जानती थी मैं
निचे गिराने वाले थे लोग,

कही मुझे हसते देख लिया
रूलाने आ जाते थे लोग ,

मैनें छोड़ दिया लोगो की
बातो का करना कोई शौक

फिर खुश रहने लगी मैं
इठलाने लगे लोग,

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14 SEP 2020 AT 14:22

सिंध हिन्द का क्या रोचक मेल था ,
पर यह विभाजन का किसका खेल था।
इतिहास पढ़ा तो ,ये अखंड था ,
पर वर्तमान भौगौलिक में तो खंड खंड था।

चलो मिल कर एक सपना देखें ,
सिंध हिन्द को अपना देखें।
सिंध में भी हिंद देखें ,
हिन्द में भी सिंध देखें ....!!

🇮🇳जय हिन्द 🙏 जय भारत🇮🇳

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27 OCT 2020 AT 12:58

" मैं "

मैं! एक तारा
जिसमें तेज है स्वयं का
सामर्थ्य है प्रकाशित रहने का
फिर भी उसे बटोरनी है
अपने हक में
चांद से अवतरित
कतरा कतरा रोशनी।


(कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें)

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3 MAY 2020 AT 19:08

सुनो प्रीतम्!
मेरी हर कविता
तुम से मेरा काल्पनिक
संवाद मात्र है...

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