QUOTES ON #हिंदी_उर्दू

#हिंदी_उर्दू quotes

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19 JUN 2019 AT 20:55

शहर ढूंढा
हर गली ढूंढा
पर कहीं न पाया...
तवायफ़ की तलाश मेरी
जाकर मेरे आँखों मे खत्म हुई।।

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19 JAN 2019 AT 22:34

बिछड़ने से ज़रा पहले, ज्यादा करीब हो जाते हैं
हम जिन्हें बहुत चाहते हैं, अक्सर वो खो जाते हैं

दिल, मानता ही कहाँ है, पराया उनको
ग़ैर कहकर, हमें छोड़, जो जाते हैं

याद पूरी निकलती ही नहीं, अब उनकी
वो ज़रा से जो याद आएं, आँखें भिगो जाते हैं

होता है यही किस्सा, अब हर रात
हम इंतज़ार करते करते, सो जाते हैं

हवाएं मचाती हैं, बवंडर दिनभर
रात को चुपके से बादल, ओस से धो जाते हैं

है कैसी किस्मत अपनी मौला
करीब जाएं जिनके, दूर वो जाते हैं

ये मुफलिसी नहीं अब, बर्दाश्त के काबिल
छोड़ो यार, हम तो जाते हैं

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24 DEC 2018 AT 0:07

सवेरे ने, कोहरे का ढेर लिया है
यूँ मानो, समाँ पूरा, घेर लिया है
इतरा रहा है, जाने किस बात पर
जाने क्यों, रवि से मुँह, फेर लिया है
फिर कोई, हिमाकत करें
आओ, धूप का स्वागत करें

वो चाय की चुस्की अधूरी है
और एक बात है, जो ज़रूरी है
खैर छोड़ो, तुम कहाँ समझोगे
तुम्हारी, अपनी मजबूरी है
फिर कोई, हिमाकत करें
आओ, धूप का स्वागत करें

छुपी बैठी है, बादल के पीछे
जैसे, नज़र कोई, काजल के पीछे
एक मचलता सा दिल है वो
धड़क रहा है, किसी आँचल के पीछे
फिर कोई, हिमाकत करें
आओ, धूप का स्वागत करें

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16 JUN 2021 AT 15:44

लफ्ज़ो को तो क़ैद कर लिया
पर कमबख्त ...आंखें बेलगाम रह‌ गई....

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17 NOV 2018 AT 23:45

हमारी ओर से, कोई गवाही नहीं देता
और चिल्लाना भी हमारा, सुनाई नहीं देता
तोड़ मरोड़ कर, संतोष ढूंढ रही है दुनिया
क्या कुछ भी यहां, दिखाई नहीं देता
हालात, बद से, बदतर हो गए
साल, करीब सत्तर हो गए

सुना तो था, अपने हाथों में अपनी तकदीर है
जाने क्यों फिर, पैर थामे, अपनी सी ज़ंजीर है
थाली में अपनी, झांक कर तो देखो
वादों के फाके हैं, आँखों का नीर है
हालात, बद से, बदतर हो गए
साल, करीब सत्तर हो गए

आपस में, लड़ते रहे हम, ज़माने के लिए
वो आए ही कहाँ, कुछ बताने के लिए
कुछ पलों के लिए तो, खुलती है आँखें अपनी
हम जागते भी हैं मगर, फिर सो जाने के लिए
हालात, बद से, बदतर हो गए
साल, करीब सत्तर हो गए

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15 NOV 2018 AT 23:42

एक समय की बात है, छोड़ो क्या बताऊं
ये अधूरे जज़्बात है, छोड़ो क्या बताऊं
बता दूं, किसी से कहोगे तो नहीं
यार मगर तुम, चुप भी रहोगे तो नहीं
ज़ाती बात भी, सरेआम करते आया हूँ
यूँ ही तो मैं खुद को, नीलाम करते आया हूँ

तुम्हारी बात भी, यूँही कही होगी
और तुम भी तो, वहीं रहीं होगी
कुछ ऐसा ही तो है, किरदार अपना
वादा भी कैसे करूँ, दोबारा नहीं होगी
ज़ाती बात भी, सरेआम करते आया हूँ
यूँ ही तो मैं खुद को, नीलाम करते आया हूँ

डरता हूँ, कुछ ज्यादा न बोल जाऊं
दबे राज़, बेकार ही न खोल जाऊं
है मुश्किल बड़ा, हक़ीक़त से ओझल रहना
ऐसे कैसे मैं, खुद को उलझाऊँ
ज़ाती बात भी, सरेआम करते आया हूँ
यूँ ही तो मैं खुद को, नीलाम करते आया हूँ

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14 SEP 2019 AT 16:37

हिन्दी में कुछ बात है, हिन्दी में अपनापन है, हिन्दी में साज़ है - जैसे बिछड़े पुराने यार से मिलने पे पुरानी कहानियाँ याद आती हैं , जैसे मधुर धुन कोई कानों से होके मन को शीतल कर जाती है ।
हिन्दी बिना किसी भेदभाव के सारी भाषाओं का अच्छा संगम है ।
हिन्दी मेरी ज़ुबान है तभी शायद मेरे दिल में मेहराम है ।


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1 JAN 2021 AT 11:51

किसी आत्मा को दुख देकर,
लोग चले परमात्मा से दुआ करने।
चार दीवारों में बैठे क्या चार दिन!
लोग लगे कैदी समझने।
अपनों को पीछे खींच कर,
लोग चले तरक्की का पिटारा भरने।
डर एक मौत का दिखा कर,
लोग लगे भेजने मुर्दों को मरने।
ऐ खुदा!ये तेरी दुनिया,
कुछ लोगों को दुनिया समझकर,
लगे दुनिया से बिछड़ने।

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14 SEP 2019 AT 11:51

आओ सुनाएँ तुम्हें हम हिंदी, उर्दू की ज़ुबानी
दोनों ज़बानों से ही हम बनते है हिंदुस्तानी

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31 AUG 2019 AT 17:09

ख्वाहिशें!वक़्त के तकब्बुर में जल रहीं हैं !

शब-आे-रोज़ मेरी ज़िन्दगी यूंही ढल रही हैं !!

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