इश्क़ को इश्क़ की हद रहने दे ,
जब तलक रूहें न मिले,जिस्म पर्दे में रहने दे
इश्क़ में दिल पागल हो जाता है माना मग़र
दिमाग़ को तो अपने तू ठीक रहने दे
मुझे ख़ुदा ना बना तू इश्क़ में अपने
ये दर्जा माँ बाप का,उन्हीं का रहने दे
मैं कैसे डूब जाऊ मुकम्मल तुम में
मुझ को थोड़ा सा मेरा भी रहने दे
तू चाँद आस्माँ का , तारों से याराना रख
मैं बाशिंदा ज़मीं का,मुझे जुगनुओं का रहने दे
मैं भी पिघल गया तो हादसा हो जाएगा
'गर मैं पत्थर हूँ तो मुझे पत्थर रहने दे
इश्क़ फ़क़त इश्क़ देखता है माना मग़र
"मुनीष"कुछ लिहाज़ जमाने का भी रहने दे
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