कामना,लोभ मिटाकर, खुद को निष्काम किया है
जवान हसरतों को जलाकर, खुद को बच्चा किया है
बढ़ती उम्र के साथ गलतियां बेहिसाब की
अहसास होते ही हर गलती का सुधार किया है
आशिकी का भूत था, न हद थी पागलपन की
आवारगी में ना जाने,दिल किस-किस के नाम किया है
ना तलब खूबसूरती की,ना बहक सकता हूँ अब प्रमत्त नयनो से
इच्छाओं, अभिलाषाओं का गला घोंटकर, खुद को योगी किया है
हुस्न दिखाकर ढूंढ रहे हैं मुझमें वो शख्स पुराना सा,
बेख़बर है कि "मुनीष" ने "मुनीष" को मारकर,"मुनीष" जिंदा किया है
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