उसके नाम की वो चूड़ियां,
कब मेरे हाथों की बेड़ियां बन गई,
मुझे पता ही नहीं चला
उसके नाम का वो मंगलसूत्र,
कब मेरे गले का फंदा बन गया,
मुझे पता ही नहीं चला
उसके नाम का वो सिंदूर,
कब मेरे माथे पर लगा कलंकनुमा धब्बा,
हो गया मुझे पता ही नहीं चला
उसकी पहनाई हुई पायल,
कब मेरे पैरों की जंजीर बन गई,
मुझे पता ही नहीं चला
उसने पहनाई हुई नोज रिंग,
कब मेरी जिंदगी की नकेल बन गई,
मुझे पता ही नहीं चला
मेरे अंदर की आवाज,
मेरे कानों तक पहुंचने से पहले ही,
उसके पहनाए हुए झुमको के नीचे कैसे दब गई,
मुझे पता ही नहीं चला
मेरे अंदर की औरत,
उस नामर्द के आगे कैसे झुकती चली गई,
मुझे पता ही नहीं चला
पापा के सर का ताज थी में,
कब उसके पैरों की जूति बन गई,
मुझे पता ही नहीं चला
मेरी आजाद जिंदगी,
कब रिश्तो के पिंजरे में कैद हो गई,
मुझे पता ही नहीं चला
उसके जिस्म की आग बुझाते बुझाते,
मेरे अंदर की रूह
कब जल कर खाक हो गई मुझे पता ही नहीं चला
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