तेरा वो देख हमें , बालों को हटाना इतने में तेरे , झुमके का कुछ कह जाना पलक का झपकाना , तेरा मुस्कुराना बातों के बिना सब कह जाना बिंदी का आकर्षण , आकषिर्त कर जाना मन ये सोच मेरा हर्षित हो जाना ।।
हरी भरी थी धरती मैया आकाश केसर मे रंगा था कितने कुर्बानी के बल पे लहराया हमारा तिरंगा था
विधवा हुई थी माँ बहने, अनाथ हुए कई बच्चे थे हिम्मत फिर भी ना डिगा था उनका सपूत हिन्द के जो सच्चे थे बापू शांति फैलाते रहे, पुरे देश मे हो रहा दंगा था कितने कुर्बानी के बल पे लहराया हमारा तिरंगा था
200 वर्षों के बाद हमने चखा आजादी का स्वाद था दुश्मन की खुशी थी फिकी पड़ी जब हिन्द हुआ आजाद था हर घर मे होली दीवाली थी मन हर्षित था मन चंगा था कितने कुर्बानी के बल पे लहराया हमारा तिरंगा था ||
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