रह गई अकेली अब इस सफर में
साथ रहने का दौर मां, अब ख़तम हुआ
जो लड़ती थी हर एक गलत बात पे
उसका वो जोश मां, अब ख़तम हुआ
सोती थी सीने से जो तेरे लिपटकर
लालच तेरी लोड़ का मां, अब ख़तम हुआ
समझती थी बातें जो आंखों से दिल की
वो नैनों का जोड़ मां, अब ख़तम हुआ
मनाती थी तुम मुझे मेरे रूठ जाने पर
ज़िन्दगी का वो मोड़ मां, अब ख़तम हुआ
बेरंग सी जिंदगी समझती थी जिसे मोहिनी
सभी रंगों का निचोड़ मां, अब ख़तम हुआ
'गीले पन्नों का सफर' जो मैंनें चला
उनपर स्याही का ओड़ मां, अब ख़तम हुआ,,
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