शौक से जीने का मौका ही नही दिया ज़िन्दगी ने,
खेलने की उम्र में ज़िम्मेदारिया आ गयी।
जब उनको निभाने चला तो, परेशानिया आ गयी,
सुलझाने की कोशिश में और उलझते गए।
जब भी हार के थक गया ज़िन्दगी से,
तब तब मुझे मेरी माँ की वो बचपन की कहानियाँ याद आ गयी।
खेलने की उम्र में ज़िम्मेदारिया आ गयी।
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