आँखे छुपाती नही, मैं छुपाता रहूँ
सबब सुर्ख आँखों का क्या कहूँ
कंकर, तिनका, धूल, सब बहाने है
लाल, सुर्ख आंखों से बहता है लहू
शिकायत, गिला, शिकवा कुछ नही
हमदम तो था, ना था तेरी जुस्तजू
झिझक, शर्म, हया, कहाँ है दरम्यां
सरे महफ़िल मगर, तुझे क्या कहूँ
कसक, ख़लिश यूँहीं नही बेवज़ह
हसरतें अधूरी, नामुम्किन आरज़ू
कतराए लहू बहता है, पलको पर
पूछता है, क्या बनकर अश्क़ बहूं
कितनी आज़माइश है बाकी,'राज',
ज़ुल्म-ए-जिंदगी कब तक, मैं सहूँ
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