"सत्यं शिवं सुन्दरं"
परहित कर्म करें हमसब जब,"सत्यं सुंदरं "शिवं बने।
आत्मबल के भावों से जुड़ ,सुंदर दिव्य रूप सजे ।।
"सर्वे भवन्तु सुखिनः"का चिंतन,इक दूजे से नहीं लड़ें,
वसुधैव कुटुम्बकम्'आदर्श मान,उन्नति पथ पर सदा बढ़ें।।
ध्वनि और प्रकाश के जरिये,आकाश हमें समझाता है,
वसुन्धरा के प्रति "सुंदरं"की ,ध्वजा को फहराता है ।।
प्रकृति से परिचय हुआ तो ,बहती पवन में उड़े नभचर,
कल कल करते झरने का स्वर ,शिवं सुंदरं बतलाता है।।
हे असीम! सीमित सीमा में ,"सत्यं"जीवों ने पाया ,
उनके अंतःकरण मध्य ,द्युतिमान रही शिव की माया।।
निराकार ! साकार तुम्हारा ,भौतिकता में उभर के आया,
स्वर ,गीत ,छंद,मकरंद-गंध,बन हिय में सत्य प्रकटाया।।
सुधा सक्सेना(पाक रूह)
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