सुख तो सब बाटेंगे मानुष! दुख ना कोई बाँटेगा,
क्यों सबसे कहकर रोता है, दुख अपने तू खुद काटेगा।
ये जीवन क्या? ये तो केवल सुख-दुःख की एक नैया है,
धीरज का बस थाम ले चप्पू तू ही इसका खिवैया है।
"जीवन ये दुःख का सागर है" का रोना क्यों रोता है,
हक में जो आई हैं खुशियाँ, अंजाने में खोता है।
सुख तो...
क्यों सबसे...
मुट्ठी बाँध के आया था और खुले हाथ से जाएगा,
हाय-हाय कैसी रे पगले! क्या खोया जो पायेगा।
हर मुश्किल में खुद को खुश रख खुशी बाँटता चल आगे,
और पलटकर देख ले बन्दे! दुःख तेरे तुझसे भागे।
सुख तो...
क्यों सबसे...
-