" वो कहती है ,,,
क्यों ढिंढोरा पीटते हो ,,,
प्यार का
मैंने कहा ,,, ज़ालिमा
ढोल-नगाड़े जब तक न बजेंगा
तब तक
दूल्हे पे सेहरा कैसे सजेंगे ?
और
माथे पे घुघट का पहरा,,,जो पड़ेगा
वही तो
रात में आँचल बन कर ढलेगा ,,,
अंधियारे में टिमटिमाता दिप,,, जलेगा फिर भुझेगा ,,,
सात फेरो वाली गांठ
ओर भी मजबूत हो जाएगी
जब
गहरे सिंदूर वाली रात ,
योवन तरंगिनि बन कर आएगी
रोम-रोम खिल उठेगा ,,,
फिर
हर दिन मोम-बाती की तरह जीवनसंगिनी की बाहों में पिघलेगा,,,
मोहब्बत का तिलिस्मी चिराग ,,, प्यार के जादू से रोज़ जलेगा,,,
एक दूजे की बाहों के आलिंगन में सुस्त-सुबह को अंगड़ाई लिए ,,,
खूब तानो से,,, दिल कोसेगा ,,,
क्यों हुई ये सुबह , इन सिलवटों से यही सवाल पूछेगा !!!
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