फ़िक्र-ए-सितम में आज ऐसे दर-ब-दर हुए ,
ख्वाब-ए-खुशी ही मिट गई , इस कदर हुए !
छोड़िए ये सुर्ख़ आँखें , ये तो कुछ नहीं
बे-मुहाबा दिल जला , ऐसे असर हुए !!
तल्ख मंज़र देख के हमने हवाओं का
इश्क़ चाहत क्या , सभी से बेखबर हुए !
रंज-ओ-ग़म न पूछिए , अब इस फ़साने का ...
बे-सबब दिल पे सितम तो हर पहर हुए !!
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