रोज नयी रार कर,
बैठ ना तू हार कर,
सिंह तू सपूत तू,
अब अमिट प्रहार कर.!
स्वार्थ सिंधु खौलता,
शौर्य तेरा तौलता,
उठ छलांग मारकर,
सिंह सा दहाड़ कर..!
थक गयी मां भारती,
देर तक पुकारती,
वीर भोग ले मुझे,
कर्म का चुनाव कर.!
कापुरूष नहीं है तू,
प्रखर पुरूष वही है तू,
जिसके स्वर से कांपती,
ये सृष्टि सारी हारकर..!
सिद्धार्थ मिश्र
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