मैं एक दरख़्त हूँ कभी मेरे साये में बैठ कर तो देख मैंने हज़ार बाहें फैला रखी हैं तू भी मुझसे लिपट कर तो देख तूने अपनी बांहों में टैटू बना रखा है मेरे बदन पर भी किसी का नाम गुदवा के तो देख
तुम क्या जानो हम, राज़ कितने हैं दिल में दबाये चले.. नही अपना कोई इस भीड़ में मेरा, मेरे साथ हैं सफ़र में पराये चले.... उड़ने को तो पर तैयार हैं लेकिन, हम बोझ हैं कन्धों पे उठाये चले.. क्या शिकवा किसी से करें ना साथ देने का, बिन रौशनी मेरे संग ना मेरे साये चले....