इस मंच पर हमारी प्रथम सहेली
लगती है जैसे हो अद्भुत पहेली
शुद्ध हिंदी में करती कविता
नाम जिसका, हमारी प्रिय सरिता...!
नाम के ही स्वरूप प्रकृति
शब्दों से रचती सुंदर आकृति
हरपल निरंतर बहती रचना
सरिता लेखनी अप्रितम रसना...!
कभी दिखाती चूड़ियाँ, तो
कभी आँखों से करे घायल
जिनकी सुंदर रचनाओं के
हम सभी हो चुके हैं कायल...!
रंग रूप तो नहीं देखा लेकिन
काव्य लेखन का कमाल करीना
शब्दों को ऐसे तराशे
पारखी का जैसे कोई नगीना...!
जी खोल करे तारीफ़
चेहरे पर लाए मुस्कान
हौसला बढ़ाए, गलतियाँ सुधारे
हमारे लेखन में उनका भी एहसान...!
राणाजी की जो वनिता
काव्य की है पावन सरिता
छंद, अलंकार से सुसज्जित
शांत, सौम्य, माधुर्य उनकी हर कविता...!
दुआ हमारी ख़ूब करे जीवन में विकास
हसती खिलखिलाती रहे, न हो उदास
जीवन भर बना रहे, हमारा यूँ ही साथ
हरपल ईश्वर से हाथ जोड़, यहीं अरदास...!
-