दूर हो तुम, पर पास हो तुम।
मेरे दिल की, आस हो तुम।।
लिख चुका हूँ , जो कहानी ।
उस कहानी का, सार हो तुम ।।
हकीकत हो या, ख्वाब हो तुम।
जो भी हो ,पर नायाब हो तुम ।।
जिसे उम्र भर मैं, पढ़ना चाहूँगा।
वो पसंदीदा ,किताब हो तुम।।
चाहत हैं तुम्हारी ,पर सराब हो तुम।
दिल में दफ्न हैं जो ,वो राज हो तुम।।
तुम्हारे बारे में , कहूँ तो क्या कहूँ।।
जैसी भी हो , लाजवाब हो तुम।।
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(सराब-मरीचिका)
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