बुजुर्गो, सयानों के साथ बैठने से कुछ
अच्छा ही मिलता है। – रजनीश
मेरे एक घनिष्ट मित्र के दादाजी, जो मुझसे मित्र का भाव भी रखते थे, क्योंकि मैं कई-कई घंटे बात करता उनकी बातें सुनता। शुरू से ही अपनी उम्र से बड़े लोगों के साथ बैठना, बात करना, शौक रहा है मेरा...
वो कहते थे कि "आदमी का असली चरित्र जानना हो तो, उसको उसके अपने बेटे का ब्याह को तय करते हुए या उस बेटे की शादी के वक्त, उसके व्यवहार से जाना जा सकता है।"
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