"प्रेम".....
मिथ्यारहित "प्रेम" का अस्तित्व निर्भर है
और वर्तमान में सम्मिलित है.....,,
दो दैवीय आत्माओं का मिलन ,
अंतःकरण का निश्छल रिश्ता ,
पुष्प रूपी कोमल भावों का
प्रेमी के चरणों पर निश्वार्थ अर्पण ,
मन का साम्य दर्पण ,
अहम्, छल, कपट और ,
मिथ्या का तर्पण ,
हृदय का निरपेक्ष और अथाह समर्पण ,,,
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"
इन सब के साथ अंत में
विरह की वेदना।।
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