कोई जादू नहीं हूँ,
फिर भी पहचान जाती हूँ,
लगता है कोई अदाकारी की है,
सब वाह! वाह! जो कहने लगे हैं,
कल जहाँ गयी थी,
वहाँ अभी भी नज़र आती हूँ,
किसी खेल की तरह बल्लें घुमाती हूँ,
याद आते हैं वो सपने जो,
नींद नहीं आने देते थे,
जिन्हें देखते-देखते मैं,
ऐसे ही सोया करती थी,
आज वो हकिकत बन,
मेरे सामने आए हैं,
जैसे बिन-बुलाए मेहमान की तरह,
आखिर वो मेरे घर रहने आए हैं..
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