ये सन्नाटा महसूस कर रहे हो,
कितना घना है ना,
खुद के मन की आवाज भी
अब सुनाई कहाँ दे रही।
सब चल रहा है,
दुनिया दौड़ रही है,
सब सिनेमानुमा,
अपने लय में चल रहा,
बस ये आवाजें,
ये आवाजे कहीं नही।
वो देखो वो लडक़ी,
चीखती सी लग रही,
वो देखो वो शक़्स,
पुकारता सा लग रहा,
तुम देख रहे हो,
अपनी आँखों से,
पर आवाजें,
वो क्यों नही महसूस होती,
कानों को तुम्हारे।
डर लग रहा न अब,
ये सब मंजर देख कर,
बिना आवाजो के,
ये कुछ और नहीं है,
ये मौन है,सन्नाटा है,
तुम्हारे अपने मन का,
जो दिन पर दिन ,
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