पड़े शिथिल तन माँओं के और आँखें रूदन गाएँ
हाय, कितना शोक मनाएं?
बिखरे झोले बिखरे बच्चे कापी और किताब
वहीं पास में खून में डूबा बैठा था महताब
समझ नहीं आता अब किस किस पर आरोप लगाएं,
हाय, कितना शोक मनाएं?
मार दहाड़े चिल्लाये, सहमी डोरी जूते की
सुबक रही थी वहीं किनारे पानी की बोतल भी
मृत खुले नेत्र अपनी पीड़ा को बोलो किसे सुनाएं,
हाय, कितना शोक मनाएं?
बंटी के हाथों को छूती टूटी हुई कलम
कहती मुझको घिस लो मेरा निकल रहा है दम
बंटी शिथिल पड़ा, कर उसके कैसे कलम उठाएं?
हाय, कितना शोक मनाएं?
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