सहलाके दिल को, पुचकारते रहे,
दर्द सहकर ही जीस्त गुजारते रहे.
अपने आपको देखा न कभी,
कमिया औरों की ही निहारते रहे.
चेहरे पर जमी थी धूल मगर,
पोछा आईने पर ही तो मारते रहे.
सदा उन तक कैसे पहुंचती,
दिल ही दिल में उन्हें पुकारते रहे.
नित उनके ख्यालों में खोकर,
शामों सहर यादों में, गुजारते रहे.
औरों पर, उठी रही उंगलियां,
अपनी ग़लती, कहां, सुधारते रहे.
रू ब रू आकर कह न सके,
अहसास कागज़ों पे उतारते रहे.
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