मनुष्य एक बहुत बड़ी, चक्रव्यूह में फंसा हुआ है!
जैसे अभिमन्यु चक्रव्यूह में, फंस कर ही अपनी जान दे दी!
वैसे ही, मनुष्य सिर्फ अपनी जान दे रहा है!
चक्रव्यूह की प्रथम द्वार को भी, तोड़ नहीं पा रहा!
बस यहां फर्क इतना है, अभिमन्यु को भीतर जाने की ज्ञान थी!
परंतु चक्रव्यूह को भेद कर, बाहर आने की ज्ञान नहीं थी!
किंतु मनुष्य को हर द्वार की ज्ञान है!
परंतु पर्दे की वजह से, वो उस द्वार को देख नहीं पाता!
इन परदों को हटाने के लिए, बहुत महान पुरुष जन्में!
पर मेरे विचार में वह सारे विफल रहे!
चाहे वो महावीर हो, चाहे बुद्ध हो, चाहे यीशु हो, चाहे मोहम्मद हो, या हो कृष्ण, और राम या कोई भी साधु आत्मा!
विफल होने का तात्पर्य यह नहीं, कि वो असफल रहे!
वो तो परमधाम, परम ज्ञान, और स्वयं परमात्मा को पाएं!
पर किसी के भीतर घुस कर, उनकी परदों को कैसे हटाते?
उस संज्ञान में, वो भी विफल रहे है!
पर्दे तो आपके आंतरिक घरों की, स्वयं हटाने हैं!
खिड़कियां तो आपके आंतरिक घरों की, स्वयं ही खोलनी है!
जिस चक्रव्यूह की रचना में, आप फंसे हैं! उन सभी द्वारों तक, खुद ही पहुंचना है!
और पहुंचे हुए हैं आप! बस दरवाजे को धक्का देना है!
फिर आप स्वतंत्र होंगे, फिर आप इस संसार को खुद के अंदर पाएंगे!
ना कि आप, संसार में खुद को पाएंगे!
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