कभी पढ़ा है.....
मेरी चुप्पी के पुस्तकालय
की दहलीज पर शब्दों की
प्रतीक्षा करते हुए मुझे!!
मेरे हृदय के वंशबीज को
जिसकी जड़े फैली हुई थी
शांत धरा रूपी तुम्हारे पास
लहलहाते हुए मुझे!!!!
देखा है कभी मेरे भीतर
चुप सी स्त्री के सत्तीत्व को
एक रोदन रूपी प्यासे के पास
मुस्कुराते हुए मुझे!!
शायद नहीं देखा होगा
तो तुमने देखा ही क्या
रसोई, बिस्तर और खुशी
से बिल्कुल अलग और परे हूं
देखना कभी मुझे!!
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